पौधों में वाष्पोत्सर्जन

पौधों की जड़ो के द्वारा मिट्टी से अत्यधिक मात्रा में जल का अवशोषण किया जाता है, लेकिन इस का कुछ भाग ही पौधो द्वारा उपयोग किया जाता है। जल की यह अतिरिक्त मात्रा पौधों के वायवीय भागो द्वारा जलवाष्प (water vapour) के रूप में वातावरण में छोड़ दी जाती है। इस प्रकार पौधों के वायवीय भागो के द्वारा जल का जलवाष्प के रूप में हानि होना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।


वाष्पोत्सर्जन एक जैविक प्रक्रिया है तथा यह क्रिया पौधों में पाए जाने वाले विशिष्ट प्रकार के सूक्ष्म छिद्रों के माध्यम से होता है। लगभग 90-99% जल की हानि इस क्रिया द्वारा होती है।

वाष्पोत्सर्जन के प्रकार(types of transpiration):-

पौधों के अधिकांश वाष्पोत्सर्जन उनकी पत्तियों द्वारा होता है, इसे पर्णील वाष्पोत्सर्जन कहते है। वाष्पोत्सर्जन करने वाली सतह के आधार पर पौधे में तीन प्रकार का वाष्पोत्सर्जन पाया जाता है–

  • रंधीय वाष्पोत्सर्जन : यह वाष्पोत्सर्जन की मुख्य विधि है। पौधों द्वारा वासपोत्सर्जित जल का लगभग 90% भाग इस क्रिया द्वारा ही बाहर निकलता है। पत्तियों तथा कुछ रूपांतरित तनो की सतह पर असंख्य छिद्र होते है, इन छिद्र को रन्ध्र कहते है। ये जल तथा वायु आवागमन में भाग लेते है। इन छिद्रों में खुलने एवं बंद होने की क्षमता होती है। इन खुले हुये छिद्रों से जल-क्षय को रंध्रीय वाष्पोत्सर्जन कहते है।
  • उप त्वचीय वाष्पोत्सर्जन (cuticular transpiration) : पौधों के पत्तियां तथा वायवीय भाग क्यूटिकल द्वारा ढँका रहता है। इसी क्यूटिकल द्वारा जल थोड़ी मात्रा में वाष्पीकरण द्वारा बाहर उड जाता है। इस प्रकार के वाष्पोत्सर्जन को उप-त्वचीय कहते है।
  • वातरंध्रिय वाष्पोत्सर्जन (lenticular transpiration) : पौधों के तनो व शाखायो पर छाल(bark) पायी जाती है, जिनमे छोटे-छोटे रन्ध्र उपस्थित होते है, इन रन्ध्र को वात रन्ध्र (lenticular) कहते है। इन रंध्रों द्वारा कुछ जल वाष्प बनकर बाहर निकल जाता है। इस प्रकार की जल की हानि को ”वातरंध्रिय वाष्पोत्सर्जन” (lenticular transpiration) कहते है।

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2 Comments

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  2. Pingback: वाष्पन-उत्सर्जन (Evapotranspiration) – Vision of wisdom

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