भारत का ब्लैक पगोडा
कोणार्क के सूर्य मंदिर को भारत का ब्लैक पगोडा के रूप में ख्याति प्राप्त है। यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में मशहूर यह मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी जिले के पुरी नामकशहर में स्थित है। मंदिर की स्थापना (1236) १२३६ ई.पू में गंगवंश के राजा नरसिंह देव द्वारा की गयी थी। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। कोणार्क में कोण का अर्थ है ‘कोण’ वहीं अर्क का अर्थ है ‘सूर्य’ के लिए प्रयुक्त हुआ है। यहाँ स्थानीय भाषा में सूर्य को बिरंचि नारायण कहते है।
यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट :
आश्चर्यचकित प्राचीन निर्माण कला का अद्भुत कोणार्क मंदिर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल है। ये सम्मान पाने वाला ओडिशा राज्य का वह अकेला मंदिर है।
इसे युनेस्को द्वारा सन् 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
स्थापत्य शैली :
कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव के रथ के रूप में निर्मित है। उत्कृष्ट नक्काशी इस मंदिर की शोभा में चार चाँद लगते है। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि रथ के आकार में बने इस मंदिर को सात घोड़ो द्वारा खींचा जा रहा है। यह रथ बारह पहियों से युक्त है। मंदिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह पहिये (चक्र ) साल के बारह महीनों के प्रतीक हैं। प्रत्येक चक्र आठ आरोन से मिल कर बना है जो दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं।
यह मंदिर भारत के उत्कृष्ठ स्मारक स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं की शिल्प कृतियों के लिए भी प्रसिद्ध है खजुराहो के बाद शायद ये अपनी तरह की अनोखी शिल्पकृति है। मंदिर में 3 मंडप हैं, जिनमे से 2 मंडप ढह चुके हैं।
सूर्य की तीन प्रतिमाएं यहाँ स्थापित हैं :
बाल्यावस्था- उदित सूर्य
युवावस्था- दोपहर का सूर्य
प्रौढावस्था- अस्त होता सूर्य
पौराणिक महत्व :
बिरंचि नारायण यानि सूर्य को समर्पित है यह मंदिर अर्क क्षेत्र में निर्मित है। एक मतानुसार कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कोढ़ हो गया था। साम्ब ने चंद्रभाग संगम पर तप किया और सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर उनके सरे रोगों का शमन कर दिया। सांब ने तब ठाना था कि वे सूर्य मंदिर बनवायेंगे। चंद्रभाग नदी से मिली मूर्ति की स्थापना उन्होंने मित्रवन में एक स्थान पर की तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा।
संक्षिप्त टिपण्णी :
लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट से निर्मित मंदिर शिल्प एवं स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। चूँकि मंदिर का काफी भाग धवस्त हो चुका है इसका कारण वास्तुदोष एवं मुस्लिम आक्रमण रहे हैं। ऐसे में मंदिर दर्शन अत्यंत रोमांचित करने वाला है। स्थापत्य कला का नायाब नमूना पेश करता है। यह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
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