खेजड़ी (Prosopis cineraria)

रेगिस्तान में खास उपयोगिता वाला वृक्ष है- खेजड़ी। यह वही खेजडी है, जिसकी प्रजाति के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए राजस्थान के खेजड़ली गांव में आज से करीब 230 साल पहेल 363 लोगों ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। उन्हीं की याद में हर साल इस गांव में भादवा सुदी दशम को बलिदान दिवस के रूप में मेला लगता है जो इस वर्ष 23-फरवरी, 2020 को आयोजित किया जा रहा है।

खेजड़ी / शमी / जांटी / खेजरी (Prosopis cineraria)


खेजड़ी के वृक्ष थार के मरुस्थल (Thar Desert) के अलावा पंजाब, हरियाणा, चम्बल के बीहड़ और देश के अन्य भागों में भी पाए जाते हैं। इस पेड़ की अधिकतम ऊंचाई आठ मीटर होती है। इसे अंग्रेजी में प्रोसोपिस सिनेररिया (Prosopis cineraria) कहा जाता है।

यह वृक्ष जेठ (मई-जून) के महीने में भी हरा-भरा रहता है। ऐसे में गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता, तब यह पेड़ ही छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता, तब यह चारा देता है। इसकी गहरी हरी पत्तीयाँ बबूल जैसी होती हैं, जो पशुओं के लिए एक उम्दा चारा है।

इसकी फलियां 15 से 20 सेंटीमीटर तक लम्बी होती हैं और पकने पर हल्के भूरे रंग की हो जाती हैं। इन्हें सांगरी के नाम से जाना जाता है। हरी फलियों को सुखाकर अचार तथा सब्जी बनाई जाती है। ‘पंचकूट’ नामक राजस्थान की प्रसिद्ध सब्जी में सांगरी, कमलगट्टा, केर के फल, कुमटा के बीज और काचरी के टुकड़े मिले होते हैं। गर्मियों में जब ताजी सब्जियां उपलब्ध नहीं होतीं, तब सूखी सब्जी का यह भेल-मेल ही काम आता है।

यहाँ यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर यह पेड़ रेगिस्तान की इतनी तपती गर्मी में भी कैसे जीवित रहता है। दरअसल, इसको पनपने के लिए साल में सिर्फ 10 से 90 सेंटीमीटर तक की बारिश ही पर्याप्त होती है। इसकी बारीक़ पत्तियां भी इसके लिए पानी बचाने का काम करती हैं, क्योंकि पत्ती जितनी बड़ी होती है, उससे वाष्प उत्सर्जन (Transpiration) यानी पानी की खपत उतनी ही ज्यादा होती है। पत्तियों के अलावा इसकी जड़ें भी मददगार होती हैं। जड़ें जमीन के भीतर 30 से 40 मीटर तक चली जाती हैं, और वहां से जरूरी पानी खींचती रहती हैं।

इस पौधे की एक विशेषता यह भी है कि यह रेगिस्तान में जमीन के नीचे पानी होने का भी एक सूचक (water indicator) होता है, क्योंकि अगर यह पौधा है तो इसका मतलब है कि उसके आस-पास जमीन के निचे 100 से 200 फीट तक पानी मिल सकता है।

इसकी जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया की वजह से यह अन्य फसलों के लिए भी पोषण का काम करते हैं। इसीलिए रेगिस्तानी क्षेत्रों में इसे खेतों के बीच-बीच में लगाने की परम्परा है।

वास्तु में भी अहम:

खेजड़ी का पौधा वास्तुशास्त्र में शमी के नाम से ज्यादा जाना जाता है। वास्तु में विश्वास रखने वाले अपने घरों में शमी का पौधा जरूर लगाते हैं जो नर्सरियों में भी मिल जाता है।

वैदिक शास्त्रों में इसे सूर्ये व अग्नि का प्रतीक माना गया है। वैज्ञानिक जाँच से यह भी पता लगा है कि इसकी लकड़ी की कैलोरिफिक वैल्यू (Calorific value) बहुत अधिक होती है। अर्थात, इसमें अग्नि तत्व अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसीलिए यज्ञों में अग्नि प्रज्ज्वलन के लिए अरणी में शमी का इस्तेमाल किया जाता रहा है।


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