भारतीय चित्रकला
भारतीय चित्रकारी के प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं, जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 5500 ई.पू. से भी ज्यादा पुरानी है। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैयार हुई थी, इसकी सबसे प्राचीन चित्रकारी ई.पू. प्रथम शताब्दी की हैं। इन चित्रों मे भगवान बुद्ध को विभिन्न रुपों में दर्शाया गया है।
भारतीय अलंकृत कला :
यह लेख भारतीय चित्रकलाओं से संबंधित है जो विभिन्न परीक्षा की तैयारी में सहायक होगा।
मिथिला चित्रकला : (बिहार)
मिथिला चित्रकला बिहार प्रदेश के मिथिला क्षेत्र की पारम्परिक कला है। इसे ‘मधुबनी लोककला’ भी कहते हैं। इस चित्रकारी को गावं की महिलाएं सब्जी के रंगों से तथा त्रि-आयामी मूर्तियों के रूप में मिट्टी के रंगों से गोबर से पुते कागजों पर बनाती हैं और काले रंगों से बनाना समाप्त करती हैं।
मधुबनी शैली के चित्र बहुत वैचारिक होते हैं। पहले चित्रकार सोचता है और फिर अपने विचारों को चित्रकला के माध्यम से प्रस्तुत करता है। चित्रों में कोई बनावटीपन नहीं होता। देखने में यह चित्र ऐसे बिम्ब होते हैं जो रेखाओं और रंगों में मुखर होते हैं।
कलमकारी चित्रकला : (आन्ध्रप्रदेश)
‘कलमारी’ का शाब्दिक अर्थ है कलम से बनाए गए चित्र। यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती हुई अधिकाधिक समृद्ध होती चली गई। यह चित्रकारी आंध्र प्रदेश में की जाती है। इस कला शैली में कपड़ों पर हाथ से अथवा ब्लाकों से सब्जियों के रंगों से चित्र बनाए जाते हैं। कलमकारी काम में वानस्पतिक रंग ही प्रयोग किए जाते हैं। एक छोटी-सी जगह ‘श्रीकलहस्ती’ कलमकारी चित्रकला का लोकप्रसिद्ध केन्द्र है। यह काम आन्ध्रप्रदेश में मसोलीपट्टनम में भी देखा जाता है। इस कला के अंतर्गत मंदिरों के भीतरी भागों को चित्रित वस्त्रपटलों से सजाया जाता है।
हाथ से खुदे ब्लाकों से इन चित्रों की रूपरेखा और प्रमुख घटक बनाए जाते हैं। बाद में कलम से बारीक चित्रकारी की जाती है। यह कला वस्त्रों, चादरों और पर्दां से प्रारंभ हुई। कलाकार बांस की या खजूर की लकड़ी को तराशकर एक ओर से नुकीली और दूसरी ओर बारीक बालों के गुच्छे से युक्त कर देते थे जो ब्रश या कलम का काम देती थी।
कलमकारी के रंग पौधों की जड़ो को या पत्तों को निचोड़ कर प्राप्त किए जाते थे और इनमें लोहे, टिन, तांबें और फिटकरी के साल्ट्स मिलाए जाते थे।
उड़ीसा पटचित्र : (उड़ीसा)
कालीघाट के पटचित्रों के समान ही उड़ीसा प्रदेश से एक अन्य प्रकार के पटचित्र प्राप्त होते हैं। उड़ीसा पटचित्र भी अधिकतर कपड़ों पर ही बनाए जाते है फिर भी ये चित्र अधिक विस्तार से बने हुए, अधिक रंगीन और हिन्दु देवी-देवताओं से संबद्ध कथाओं को दर्शाते हैं।
फाड़ (फ़ड़) चित्र : (राजस्थान)
फाड़ चित्र एक प्रकार के लंबे मफलर के समान वस्त्रों पर बनाए जाते हैं। स्थानीय देवताओं के ये चित्र प्रायः एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाये जाते हैं। फाड़ चित्रों की प्रमुख विषयवस्तु देवताओं और इनसे संबंधित कथा-कहानियों से संबद्ध होती है, साथ ही तत्कालीन महाराजाओं के साथ संबद्ध कथानकों पर भी आधारित होती है।
इनके साथ पारम्परिक गीतकारों की टोली जुड़ी होती है जो स्क्राल पर बने चित्रों की कहानी का वर्णन करते जाते हैं। इस प्रकार के चित्र राजस्थान में बहुत अधिक प्रचलित हैं और प्रायः भीलवाड़ा जिले में प्राप्त होते हैं। फाड़ चित्र किसी गायक की वीरता पूर्ण कार्यों की कथा, अथवा किसी चित्रकार/किसान के जीवन ग्राम्य जीवन, पशुपक्षी और फूल-पौधों के वर्णन प्रस्तुत करते हैं। ये चित्र चटख और सूक्ष्म रंगों से बनाए जाते हैं। चित्रों की रूपरेखा पहले काले रंग से बनाई जाती है, बाद में उसमें रंग भर दिए जाते हैं।
गोंड कला : (गोदावरी बेल्ट: Mh., तेलंगाना, आंध्रा)
भारत के संथाल प्रदेश में उभरी एक बहुत ही उन्नत किस्म की चित्रकारी है जो बहुत ही सुंदर और अमूर्त कला की द्योतक है। गोदावरी बेल्ट की गोंड जाति जो जन जाति की ही एक किस्म है और जो संथाल जितनी ही प्राचीन है, अद्भुत रंगों में खूबसूरत आकृतियाँ बनाती रही है।
बाटिक प्रिंट : (अफ्रीका से माना जाता है)
सभी लोककलाएँ और दस्तकारी मूल में पूरी तरह से भारतीय नहीं है। कुछ दस्तकारी तथा शिल्पकला और उनकी तकनीकी जैसे बाटिक प्राच्य प्रदेश से आयात की गई हैं परंतु अब इनका भारतीयकरण हो चुका है और भारतीय बाटिक एक परिपक्व कला का द्योतक है जो प्रचलित तथा महंगी भी हैं।
वर्ली चित्रकला : (महाराष्ट्र)
वर्ली चित्रकला के नाम का संबंध महाराष्ट्र के जनजातीय प्रदेश में रहने वाले एक छोटे से जनजातीय वर्ग से है। ये अलंकृत चित्र गोंड तथा कोल जैसे जनजातीय घरों और पूजाघरों के फर्शों और दीवारों पर बनाए जाते हैं।
पशु-पक्षी तथा लोगों का दैनिक जीवन भी चित्रों की विषयवस्तु का आंशिक रूप होता है। शृंखला के रूप में अन्य विषय जोड़-जोड़ कर चित्रों का विस्तार किया जाता है। वर्ली जीवन शैली की झांकी सरल आकृतियों में खूबसूरती से प्रस्तुत की जाती है। अन्य आदिवासीय कला के प्रकारों से भिन्न वर्ली चित्रकला में धार्मिक छवियों को प्रश्रय नहीं दिया जाता और इस तरह ये चित्र अधिक धर्मनिरपेक्ष रूप की प्रस्तुति करते हैं।
कालीघाट चित्रकला : (कोलकात्ता)
कालीघाट चित्रकला का नाम कोलकात्ता में स्थित ‘कालीघाट’ नामक स्थान से जुड़ा है। कलकत्ते में काली मंदिर के पास ही कालीघाट नामक बाजार है। 19वीं शती के प्रारंभ में पटुआ चित्रकार ग्रामीण बंगाल से कालीघाट में आकर बस गए, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाने के लिए। कागज पर पानी में घुले चटख रंगों का प्रयोग करके बनाए गए। इन रेखाचित्रों में स्पष्ट पृष्ठभूमि होती है।
प्रारम्भ में इन कलाकारों द्वारा केवल हिन्दू देवी-देवताओं को इनमें चित्रित किया जाता था। इसी प्रक्रिया में कलाकारों ने एक नए प्रकार की विशिष्ट अभिव्यक्ति को विकसित किया और बंगाल के सामाजिक जीवन से संबंधित विषयों को प्रभावशाली रूप में चित्रित करना प्रारंभ किया।
कालीघाट चित्रकला इस सांस्कृतिक और सौंदर्यपूर्ण परिवर्तन का आइना बन कर उभरी। हिन्दु देवी देवताओं पर आधारित चित्र बनाने वाले ये कलाकार अब रंगमंच पर नर्तकियों, अभिनेत्रियों, दरबारियों, शानशौकत वाले बाबुओं, घमण्डी छैलों के रंगबिरंगे कपड़ों, उनके बालों की शैली तथा पाइप से धूम्रपान करते हुए और सितार बजाते हुए दृश्यों को अपने चित्र पटल पर उतारने लगे। कालीघाट के चित्र बंगाल से आई कला के सर्वप्रथम उदाहरण माने जाने लगे।
इसी प्रकार की पट-चित्रकला उड़ीसा में भी पाई जाती है।
प्रश्नोतरी :
1. कौन सा बौद्ध ग्रंथ शाही इमारतों में चित्रित आंकड़ों के अस्तित्व का वर्णन करता है?
- A. विनयपिटक
- B. सुत पिटक
- C. अभिधम्म पिटक
- D. इनमें से कोई नहीं
Ans: A
2. चित्रकारी के बारे में निम्न में से कौन सा कथन सही हैं:
- (a) वत्स्ययान द्वारा लिखित कामसुत्र में 64 प्रकार के चित्रों का उल्लेख किया गया है.
- (b) विष्णुधर्मोत्तर पुराण में चित्रासूत्र नामक चित्रकला पर एक खंड है.
- (c) नाटक मुद्राक्षक्ष में कई पाटास का उल्लेख है.
- (d) लेप्सासिट्र्स, लेक्सेट्रस गुप्ता युग के विभिन्न प्रकार के चित्रों के उदाहरण हैं
सही विकल्प हैं:
A. (a) और (b)
B. (b) और (d)
C. (a) और (d)
D. (a), (b) और (c)
Ans: D
3. फूल, पत्तियों और पौधों को किस अवधि के चित्रों में पहली बार दर्शाया गया था?
- A. मुगल सल्तनत
- B. गुप्त काल
- C. दिल्ली सल्तनत
- D. मौर्य काल
Ans: C
4. इतिहास की अवधि में पेंटिंग्स या चित्रकारी में फारसी और अरबी का प्रभाव कब देखा गया था?
- A. मुगल सल्तनत
- B. दिल्ली सल्तनत
- C. दोनों (A) और (B)
- D. इनमें से कोई नहीं
Ans: B
5. भारत के किस हिस्से में लघु चित्रकला विकसित हुई थी?
- A. उत्तरी भारत
- B. उत्तर-पश्चिम भारत
- C. पूर्वी भारत
- D. पूर्वोत्तर भारत
Ans: C
6. किस सम्राट के शासनकाल में रोशनी और व्यक्तिगत लघुचित्रों की जगह दीवार चित्रकला का सबसे महत्वपूर्ण रूप रहा है?
- A. मोहम्मद बिन तुगलक
- B. अलाउद्दीन खिलजी
- C. अकबर
- D. शाहजहां
Ans: C
7. किस मध्ययुगीन भारत के सम्राट की अवधि के दौरान चित्रकला अपने चरम पर पहुंची थी ?
- A. अकबर
- B. शाहजहां
- C. जहांगीर
- D. औरंगजेब
Ans: C
8. बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट में निम्नलिखित में से किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी?
- (a) रबींद्रनाथ टैगोर
- (b) अबीन्द्रनाथ टैगोर
- (c) ई.बी हावेल
- (d) आनंद केहतीस
सही विकल्प हैं
- A. दोनों (a) और (b)
- B. दोनों (b) और (c)
- C. दोनों (c) और (d)
- D. उपरोक्त सभी
Ans: D
9. 1948 में बम्बई में प्रगतिशील कलाकार समूह ……….. के तहत विकसित किया गया था?
- A. के.सी.एस.पनिक्कर
- B. एस.एच राजा
- C. फ्रांसिस न्यूटन सूजा
- D. एस.के बाकरे
Ans: C
10. इनमें से कौन सा मद्रास स्कूल ऑफ़ आर्ट से है?
- A. देबी प्रसाद रॉय चौधरी
- B. के.सी.एस.पनिक्कर
- C. दोनों A और B
- D. इनमें से कोई नहीं
Ans: C
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