भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्बन्ध में हर एग्जाम में कम से कम एक प्रश्न जरुर पूछ लिया जाता है। इस लेख में उन्ही कुछ जरुरी बातों को संकलित किया गया है जहाँ से प्रश्न बनते हैं। आप इसे पूरा पढ़ के अपना वह नंबर पक्का कर सकते हैं।


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी :

लॉर्ड डफ़रिन 1884 ई. में लॉर्ड रिपन के बाद भारत का वायसराय बनकर आया। वह 1884 से 1888 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा था।

कांग्रेस का पहला अधिवेशन सिविल सर्विस अधिकारी एलन ओक्टाविन ह्युम के नेतृत्व में 28-31 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे में हुआ था। ह्युम ने ही सबसे पहले शिक्षित भारतीय युवको को सरकार में अधिक हिस्सा देने के पक्ष में अपनी बात रखी थी जो अंग्रेजो और भारतीयों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी थी।

वर्तमान घटनाक्रम :

  1. राहुल 133 साल पुरानी पार्टी के 60वें अध्यक्ष हैं। (28 दिसंबर, 2018)
  2. वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता : सोनिया गांधी।
  3. वर्त्तमान में राजयसभा में विपक्ष के नेता : गुलाम नबी आजाद।

ऐतिहासिक तथ्य :

  1. पार्टी का गठन : कांग्रेस पार्टी का गठन स्कॉलैंड के एओ ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 को किया था।
  2. प्रथम अध्यक्ष : (व्योमेशचन्द्र बनर्जी) कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई में हुआ जिसके प्रथम अध्यक्ष ‘कलकत्ता हाईकोर्ट’ के बैरिस्टर व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे।
  3. पार्टी का विभाजन : 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को कांग्रेस के सूरत सत्र में मुख्य रूप से गरमपंथियों और नरमपंथियो द्वारा दो समूहों में (1907 में) विभाजित किया गया था। गरमपंथी दल के सबसे प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपीन चंद्र पाल थे, जिन्हें सामूहिक रूप से लाल-बाल-पाल के रूप में जाना जाता है। नरमपंथी दल से प्रमुख नेता दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले थे।
  4. पहला ब्रिटिश अध्यक्ष : जॉर्ज यूल ने 1888 में इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चौथे अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। वह पहले गैर-भारतीय थे, जिन्होंने कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।
  5. पार्टी का संविधान : 1888 के इलाहाबाद अधिवेशन में, कांग्रेस के लिए संविधान बनाया गया था।
  6. कांग्रेस के पहले अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। जिसमे भारत के हर प्रान्त से एक प्रतिनिधि शामिल था। जाने माने प्रतिनिधियों में स्कॉटिश ICS अफसर विलियम वेडरबर्न, दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, गणेश वासुदेव जोशी जैसे नेता थे।
  7. प्रथम चयनित अध्यक्ष : 1886 में कांग्रेस पार्टी के प्रथम चयनित अध्यक्ष दादाभाई नौरोजी थे जो इससे पहले इंडियन नेशनल एसोसिएशन का नेतृत्व कर रहे थे। दादाभाई नौरोजी ब्रिटिश हाउस कॉमन (1892–1895) की संसद में शामिल होने वाले प्रथम भारतीय भी थे।
  8. कांग्रेस के शुरुवाती प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपतराय, गोपाल कृष्ण गोखले और मोहम्मद अली जिन्ना थे। जिन्ना कांग्रेस में हिन्दू-मुस्लिम एकता का पक्ष रखने वाले प्रमुख नेता थे जो बाद में मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्तान के प्रथम गर्वनर बने।
  9. 1896 का कलकत्ता अधिवेशन (रहीमतुल्ला एम सयानी की अध्यक्ष्ता) में पहली बार वंदे मातरम् गाया गया था।
  10. 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में कांग्रेस एक जन-आन्दोलन में बदल गयी जिसके परिणामस्वरूप स्वदेशी आन्दोलन की शुरुवात हुयी।
  11. 1909 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता पंडित मदनमोहन मालवीय ने की थी।
  12. 1909 में गांधी जी ने, अफ्रीका में रहते हुए ‘हिन्द स्वराज’ पुस्तक लिखी और एक राष्ट्र की कामना की।
  13. 1915 में साउथ अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
  14. खिलाफत आन्दोलन : प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पार्टी गांधीजी से जुड़े रहे, जो उनके अनाधिकारिक आद्ध्यात्मिक नेता थे। 1920 में उनके ही नेतृत्व में खिलाफत आन्दोलन की शुरुवात हुई थी जिसमे सत्याग्रह आन्दोलन प्रमुख था।
  15. स्वराज पार्टी का निर्माण : 4 फरवरी, 1922 में चौरा चोरी काण्ड में पुलिस वालो की हत्या का गांधीजी ने विरोध किया था जिसकी वजह से कांग्रेस बिखर गया और कई नेताओं ने मिलकर अलग स्वराज पार्टी का निर्माण कर दिया।
  16. सत्याग्रह आन्दोलन की वजह से गांधीजी की लोकप्रियता के चलते कई नेता कांग्रेस में शामिल हो गये जिसमे सरदार वल्लभभाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, खान अब्दुल गफार खान, चक्रवती राजगोपालाचारी,  जयप्रकाश नारायण, और मौलाना अबुल कलाम जैसे नेता थे।
  17. इतने प्रखर नेताओं की बदौलत कांग्रेस एक मजबूत दल के रूप में फिर से उभरा जिसने कई मुद्दों पर खुलकर सरकार का सामना किया।
  18. पूर्ण स्वराज की मांग (26 जनवरी 1930) : 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज की मांग करते हुए 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस मनाया गया।
  19. भारत सरकार कानून 1935 के तहत 11 प्रान्तों में चुनाव हुये जिसमे से केवल बंगाल, पंजाब और सिंध को छोडकर बाकि 8 प्रान्तों में कांग्रेस सत्ता में आयी जबकि मुस्लिम लीग किसी भी प्रान्त में सरकार नही बना सकी।
  20. आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना : 1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया क्योंकि भारत के लोगो की अनुमति के बिना ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को द्वीतीय विश्वयुद्ध में लगा दिया था। 1943 में सिंगापुर में बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की जिसमे जापान का सहयोग मिला था।
  21. आजादी के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन जयपुर में 1948 में आयोजित हुआ था, जिसकी अध्यक्षता डॉ० पट्टाभि सीतारामय्या ने किया था।
  22. प्रथम लोकसभा चुनाव : आजादी के बाद कांग्रेस प्रमुख दल बनकर उभरा। 1952 में हुए प्रथम लोकसभा चुनावों में ना केवल केंद्र में बल्कि कई राज्यों में सरकारे बनाने में सक्षम हुयी।
  23. पहली गैर कांग्रेसी सरकार : 1977 तक सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस को जनता दल ने पराजित किया।
  24. 1980 में फिर सत्तर में आयी और 1989 में फिर पराजित हुयी। उसके बाद 2004 और 2009 में सरकारे बनाने में कामयाब रही।
  25. आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस बहुमत के साथ छ: बार जबकि चार बार गठबंधन के साथ सरकार बनाई। इस तरह देखा जाए तो कांग्रेस ने केंद्र सरकार में 49 सालो तक सत्ता सम्भाली।
  26. कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं जिसमे प्रथम जवाहरलाल नेहरु और अंतिम मनमोहन सिंह है।

विस्तृत जानकारी के लिए आगे पढ़ें…


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का जन्म :

1857 की क्रांति के पश्चात् भारत में राष्ट्रीयता की भावना का उदय तो अवश्य हुआ लेकिन वह तब तक एक आन्दोलन का रूप नहीं ले सकती थी, जब तक इसका नेतृत्व और संचालन करने के लिए एक संस्था मूर्त रूप में भारतीयों के बीच नहीं स्थापित होती।

सौभाग्य से भारतीयों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के रूप में ऐसी ही संस्था मिली। यूँ तो पहले भी छोटी-मोटी संस्थाओं का प्रादुर्भाव हो चुका था। जैसे 1851 ई. में “ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन” तथा 1852 में “मद्रास नेटिव एसोसिएशन” की स्थापना की गई थी।

इन संस्थाओं का निर्माण होने से राजनीतिक जीवन में एक चेतना जागृत हुई। इन संस्थाओं के द्वारा नम्र भाषा में सरकार का ध्यान नियमों में संशोधन लाने के लिए आकर्षित किया जाता था, लेकिन साम्राज्यवादी अंग्रेज हमेशा इन प्रस्तावों को अनदेखा ही कर देते थे।


कांग्रेस-पूर्व काल की राष्ट्रवादी माँगें :

  • प्रशासन के अधीन सिविल सेवाओं का भारतीयकरण।
  • प्रेस की स्वतंत्रता (वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट – 1878 का निरसन)।
  • सैन्य व्ययों में कटौती।
  • ब्रिटेन से आयात होने वाले सूती वस्त्रों पर आयात शुल्क आरोपित करना।
  • भारतीय न्यायाधीशों को भी यूरोपीय नागरिकों आपराधिक मुकदमों की सुनवाई का अधिकार देना (इल्बर्ट बिल विवाद)।
  • भारतीयों को भी यूरोपियों के समान हथियार रखने का अधिकार देना।
  • अकाल और प्राकृतिक आपदाओं के समय पीड़ितों की सहायता करना प्रशासन का कर्तव्य।
  • ब्रिटिश मतदाताओं को भी भारतीय समस्याओं से अवगत कराना जिससे ब्रिटिश संसद भारतीय हितों के संरक्षक दल का बहुमत हो।

कांग्रेस की स्थापना :

ब्रिटिश सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण भारतीयों ने 1857 का आन्दोलन किया और उसके बाद भारतीयों का विरोध कभी रुका नहीं, चलता ही रहा। श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस ने 1876 ई में “इंडियन एसोसिएशन” नामक एक संस्था की स्थापना की। उसके बाद पूना में एक “सार्वजनिक सभा” नामक संस्था का निर्माण किया गया।

भारतीय आन्दोलन प्रतिदिन शक्तिशाली हो रहा था। ए. ओ. ह्युम ने 1883 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक पत्र प्रकाशित किया, जिसमें भारत के सामजिक, नैतिक एवं राजनीतिक उत्थान के लिए एक संगठन बनाने की अपील की गई थी।

ए. ओ. ह्युम के प्रयास ने भारतवासियों को प्रभावित किया और राष्ट्रीय नेताओं तथा सरकार के उच्च पदाधिकारियों से विचार-विमर्श के पश्चात् ह्युम ने “इंडियन नेशनल यूनियन” की स्थापना की।

बाद में बंगाल में “नेशनल लीग” मद्रास में “महाजन सभा” और बम्बई में “प्रेसीडेंसी एसोसिएशन” की स्थापना इसी क्रम में की गयी। इसके बाद Hume इंगलैंड गए और वहाँ ब्रिटिश प्रेस तथा सांसदों से बातचीत कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार कर ली। कांग्रेस(INC) का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई में हुआ, जिसके प्रथम अध्यक्ष श्री व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे।

1890 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रथम महिला स्नातक कादम्बनी गांगुली ने कांग्रेस को संबोधित किया। इसके उपरान्त संगठन में महिला भागीदारी हमेशा बढ़ती ही गई।

इस प्रकार कांग्रेस के रूप में भारतीयों को एक माध्यम मिल गया जो स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका नेतृत्व करता रहा। राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम चरण 1885 से 1905 तक का उदारवादी युग के नाम से पुकारा जाता है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य :

प्रारम्भ में कांग्रेस का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करना था अथवा राष्ट्रीयता के माध्यम से सुधार लाना था। कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं…

  1. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के काम में संलग्न व्यक्तियों के बीच घनिष्ठता और मित्रता बढ़ाना।
  2. आनेवाले वर्षों में राजनीतिक कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार करना और उन पर सम्मिलित रूप से विचार-विमर्श करना।
  3. देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का सम्बन्ध स्थापित करना तथा धर्म, वंश, जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता का विकास एवं सुदृढ़ीकरण करना।
  4. महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक सामजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों के बीच चर्चा एवं उनके सम्बन्ध में प्रमाणों का लेख तैयार करना।
  5. भविष्य के राजनीतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा सुनिश्चित करना।
  6. राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों शिक्षित वर्गों को एकजुट करना।

सेफ्टी वॉल्व थ्योरी : (Safety Valve Theory)

सेफ्टी वॉल्व थ्योरी का सिद्धांत सर्वप्रथम लाला लाजपत राय ने अपने पत्र “यंग इंडिया” में प्रस्तुत किया। गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय द्वारा 1916 में यंग इंडिया में प्रकाशित अपने एक लेख के माध्यम सुरक्षा वॉल्व की परिकल्पना करते हुए कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध अपनाई गई नरमपंथी रणनीति पर प्रहार किया और संगठन को लॉर्ड डफरिन के दिमाग की उपज बताया गया।

उन्होंने संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतवासियों को राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने के बजाय ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की रक्षा और उस आसन्न खतरों से बचना बताया। उनका कहना था कि कांग्रेस ब्रिटिश वायसराय के प्रोत्साहन ब्रिटिश हितों के लिए स्थापित एक संस्था है जो भारतीयों का प्रतिनिधित्व नहीं करती।

1857 के विद्रोह का नेतृत्व विस्थापित भारतीय राजाओं, अवध के नवाबों, तालुकदारों और जमींदारों ने किया था। इस विद्रोह स्वरूप भी अखिल भारतीय नहीं था एवं नेतृत्वकर्ता के रूप में सामान्य जन की भागीदारी सीमित रूप में थी। कांग्रेस की स्थापना के समय तक स्थिति में बदलाव आ चुका था और इस ब्रिटिश प्रशासन के शोषण के विरुद्ध समाज का प्रत्येक वर्ग हिंसक मार्ग अपनाने को तैयार था।

हिंसक क्रान्ति घटित होने वाली सभी दशाओं की उपस्थिति से ही कांग्रेस की स्थापना और आगे होने वाले किसी विप्लव का टल जाना ‘सेफ्टी वॉल्व मिथक’ की सत्यता का समर्थन करता है।


स्त्रोत : विकिपीडिया, तथा अन्य स्त्रोत ( संसार लोचन ) इस कंटेंट को विभिन्न प्लेटफॉर्म्स से संकलित किया गया है.


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