सरदार सरोवर बांध परियोजना
नर्मदा नदी भारत की पांचवीं सबसे बड़ी (1312 किमी. लंबी) नदी है। अमरकंटक से निकल कर नर्मदा नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात होते हुए खंभात की खाड़ी में गिरती है। नर्मदा नदी पर 30 बड़े बांधों का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें से एक ‘सरदार सरोवर बांध परियोजना’ भी है। इस परियोजना का शिलान्यास 5 अप्रैल, 1961 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। हाल ही में यह परियोजना राष्ट्र को समर्पित की गई।
सरदार सरोवर दुनिया का दुसरा सबसे बड़ा बांध है। यह नर्मदा नदी पर बना 138 मीटर ऊँचा (नींव सहित 163 मीटर) है। नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में सरदार सरोवर और महेश्वर दो सबसे बड़ी बांध परियोजनाएं हैं और इनका लगातार विरोध होता रहा है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है लेकिन ये परियोजनाएं अपनी अनुमानित लागत से काफ़ी ऊपर चली गई हैं।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण जानकारी :
- शिलान्यास : 5 अप्रैल, 1961 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था।
- लोकेसन : यह परियोजना नर्मदा नदी पर गुजरात राज्य के ‘भरूच’ जिले के ग्राम ‘बड़गाम’ में स्थित है।
- आकार : सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 138.68 मी. (455 फिट) और लंबाई 1210 मी. है।
- इसके 30 दरवाजे हैं, हर दरवाजे का वजन 450 टन है।
- यह बांध भारत का तीसरा सबसे ऊंचा (163 मीटर) कंक्रीट बांध है, जबकि पहले एवं दूसरे सबसे ऊंचे बांध क्रमशः भाखड़ा बांध (226 मी., हिमाचल प्रदेश) और लखवार बांध (192 मी., उत्तराखंड) हैं।
- ग्रेविटी डैम : यह बांध विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गुरुत्व बांध (Gravity Dam) है, जबकि पहला संयुक्त राज्य अमेरिका का ग्रैंड कुली बांध है।
- डिस्चार्जिंग क्षमता :- 85000 क्यूमेक्स (30 लाख क्यूसेक) की ‘अधिप्लव प्रवाह क्षमता’ (Spillway Discharging Capacity) वाला सरदार सरोवर बांध विश्व का तीसरा बांध है, जबकि पहले एवं दूसरे बांध क्रमशः चीन का गजेनबा बांध (1.13 लाख क्यूमेक्स) और ब्राजील का टुकूरी बांध (1 लाख क्यूमेक्स) हैं।
- मुख्य नियंत्रक (Head Regulator) पर 1133 क्यूमेक्स (40,000 क्यूसेक्स) क्षमता और 532 किमी. लंबी नर्मदा मुख्य नहर विश्व की सबसे बड़ी सिंचाई नहर है।
- विद्युत क्षमता : सरदार सरोवर बाँध पर 200 मेगावाट की छ: एवं इसकी मुख्य नहर पर 50 मेगावाट की पाँच विद्युत इकाइयाँ लगाई गयी हैं। इनकी कुल क्षमता 1450 मेगावाट है।
- गुजरात सरकार की इससे निकालने वाली ‘नर्मदा नहर’ के किनारे-किनारे तथा विभिन्न हिस्सों पर सोलर पैनल लगाकर सौर उर्जा गृह बनाने की योजना है।
- चार राज्यों की भागीदारी : (गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान)
- बिजली का 57 फ़ीसदी हिस्सा मध्य प्रदेश को
- बिजली का 27 फ़ीसदी हिस्सा महाराष्ट्र को
- बिजली का 16 फ़ीसदी हिस्सा गुजरात को
- राजस्थान को सिर्फ़ पानी मिलेगा.
- सिंचाई सुविधा : परियोजना से गुजरात में 17.92 लाख हेक्टेयर और राजस्थान में 2.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि को सिंचाई सुविधा प्राप्त होगी।
- सरदार सरोवर परियोजना के अन्य मुख्य बाँध हैं-
- महेश्वर बाँध
- मान बाँध
- बारगी बाँध
- गोई बाँध
- जोबाट बाँध
- सरदार सरोवर बांध के जलाशय का क्षेत्रफल 37000 हेक्टेयर है।
- बांध का पूर्ण जलाशय स्तर (FRL : Full Reservoir Level) 138.68 मी. (455 फीट) निर्धारित किया गया है।
- बांध का अधिकतम जल स्तर 140.21 मी. (460 फीट) है, जबकि न्यूनतम जलस्तर 110.64 मी. (363 फीट) है।
- 86.2 लाख क्यूबिक मीटर कंक्रीट से बना है एक अनुमान के मुताबिक, इतने कंक्रीट से चंद्रमा तक सड़क बन सकती है।
- 17 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले के केवडिया में ‘सरदार सरोवर बांध परियोजना’ का उद्घाटन किया। (अपने 67वें जन्मदिन पर)।
- ख़ास बातें :
- सरदार सरोवर बांध भारत की सबसे बड़ी जल संसाधन परियोजना है।
- महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे बड़े राज्य इससे जुड़े हुए हैं।
- पानी डिस्चार्ज करने की क्षमता के लिहाज से ये दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बांध है।
- प्रोजेक्ट से जुड़ी 532 किलोमीटर लंबी नर्मदा मुख्य नहर दुनिया की सबसे लंबी सिंचाई नहर है।
- 65 हजार करोड़ रुपये हुए खर्च।
- शूलपानेश्वर, जंगली गधा, काला मृग जैसे वन्य जीव अभ्यारण्यों को भी इससे लाभ होगा।
- राजस्थान और गुजरात की एक बड़ी आबादी को नर्मदा का पानी पीने के लिए मिलेगा।
- बांध विरोधी कार्यकर्ताओं को उस समय बड़ी कामयाबी मिली जब 1993 में विश्व बैंक ने सरदार सरोवर परियोजना से अपना समर्थन वापस ले लिया।
- अक्टूबर, 2000 में सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद सरदार सरोवर बांध का रुका हुआ काम एक बार फिर से शुरू हुआ।
- सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के मुताबिक़ कंक्रीट से बना सरदार सरोवर डैम भारत का तीसरा सबसे ऊंचा बांध होगा। साल 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने इसकी ऊंचाई 121 से 138.62 मीटर बढ़ाने की घोषणा की थी।
- सम्बंधित प्रमुख वक्तित्व : मेधा पाटेकर, डॉ. ए.एन खोसला, बाबा आमटे।
विस्तृत जानकारी के लिए आगे पढ़ें…
यह देश का पहला और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है (इसमें इस्तेमाल कंक्रीट के आधार पर)। इस बांध की क्षमता 4,25,780 करोड़ लीटर है, पहले ये पानी बह कर समुद्र में चला जाया करता था।
सरदार सरोवर परियोजना का इतिहास समय-रेखा :
जानें- सरदार सरोवर बांध ने 56 साल के विवादों भरा लंबा सफर कैसे किया तय-
ये प्रोजेक्ट सरदार वल्लभ भाई पटेल का सपना था कि गुजरात का किसान पानी की किल्लत की वजह से अपनी पूरी फसल नही ले पाता है, उसे इस बांध से फायदा मिले। सरदार पटेल ने नर्मदा नदी पर बांध बनाने की पहल 1945 में की थी। साल 1959 में बांध के लिए औपचारिक प्रस्ताव बना। बाद में सरदार सरोवर बांध की नीव भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 में रखी थी।
- राज्यों के बीच विवाद होने पर गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच नवंबर 1963 में समझौता हुआ और सितंबर 1964 में डॉ. ए.एन खोसला ने अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- जुलाई 1968 में गुजरात ने अंतर राज्यीय जल विवाद कानून के तहत पंचाट (ट्रिब्यूनल) गठित कराने की मांग की, जिसके बाद साल 1969 में अक्टूबर महीने में नर्मदा जल विवाद पंचाट बना।
- 12 जुलाई 1974 को गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट और गुजरात के बीच बांध को लेकर समझौता हुआ।
- 12 सितंबर 1979 को पंचाट का अंतिम निर्णय आया। जिसके बाद अप्रैल 1987 को बांध निर्माण का ठेका दिया गया और इसके निर्माण की शुरुआत हुई।
- 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने बांध की ऊंचाई 80.3 मीटर से अधिक करने पर रोक लगाई लेकिन 19-99 में बांध को 85 मीटर तक ऊंचा बनाने की अनुमति दे दी गई।
- सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2000 में परियोजना के तेजी से निर्माण की अनुमति दी। मार्च 2000- बहुराष्ट्रीय ऊर्जा कंपनी ऑगडेन एनर्जी ने महेश्वर बांध में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- साल 2001 में बांध की ऊंचाई 90 मीटर कर दी गई। जून 2004 में बाध ऊंचाई फिर बढ़ाई गई और 110.4 मीटर तक कर दी गई।
- 8 मार्च 2006 को नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) ने बांध की ऊंचाई बढ़ाकर 121.92 मीटर करने की अनुमति दी।
- मार्च 2008 में बांध से निकलने वाली मुख्य नहर राजस्थान तक पहुंची।
- इसके बाद साल 2014 में नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी ने इस बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए आखिरी क्लीयरेंस दिया और इस बाद इसकी ऊंचाई को 121.92 मीटर से बढ़ाकर 138.68 मीटर (455 फीट) कर दिया गया।
- इसके बाद 17 जून 2017 को नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी ने 16 जून को डैम के सभी 30 गेट बंद करने आदेश दिया।
- 10 जुलाई 2017 को बांध के सभी 30 गेट लगाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2017 को परियोजना से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और पुन:स्थापना के काम को 3 महीने में पूरा करने का निर्देश दिया था।
स्थापित जल विद्युत क्षमता : ( कुल 1450 MW ) परियोजना के नदी तल विद्युत गृह की निर्धारित क्षमता 1200 मेगावॉट (6 × 200 मेगावॉट) और नहर शीर्ष विद्युत गृह की निर्धारित क्षमता 250 मेगावॉट (5 × 50 मेगावॉट) है।
By Author : इस जानकारी को इकठा करने के दौरान मैने दर्जनो वेबसाइट्स को पढ़ा है, उनमें से कुछ ने इस विरोध को केवल नकारात्मक कहा है। हमें इस बात को इतना हल्के में नहीं लेना चाहिए। क्यूंकि जब आप किसी बलिदान को कम आंकते है तो आप ऐसा करते हुए उस वस्तु के महत्व को और भी कम कर देते हैं। आपको इसे पढ़ना चाहिए –
नर्मदा के लिए आंदोलन :
नर्मदा पर बने बांधों की कहानी उन लोगों के त्याग पर आधारित है जिन्होंने अपनी सहज जिंदगी को असाधारण मोड़ दिया और अगली पीढ़ियों के लिए अपने वर्तमान को जटिल बना दिया है। आज नर्मदा परियोजना अपनी पूरी क्षमता के साथ फंक्शन कर रही है। पुरे देश के लिए यह वाकई गौरव का क्षण है, लेकिन उनकी समस्या स्थानिये है, और इसे वो लोग ही समझ सकते हैं जो वहां के निवासी हैं।
- जुलाई 1993 – टाटा समाज विज्ञान संस्थान ने सात वर्षों के अध्ययन के बाद नर्मदा घाटी में बनने वाले सबसे बड़े सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों के बारे में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि पुनर्वास एक गंभीर समस्या रही है। इस रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया कि बांध निर्माण का काम रोक दिया जाए और इस पर नए सिरे से विचार किया जाए।
- अगस्त 1993– परियोजना के आकलन के लिए भारत सरकार ने योजना आयोग के सिंचाई मामलों के सलाहकार के नेतृत्व में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया।
- दिसम्बर 1993– केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना ने पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन नहीं किया है।
- जनवरी 1994– भारी विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री ने परियोजना का काम रोकने की घोषणा की।
- मार्च 1994– मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पत्र में कहा कि राज्य सरकार के पास इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पुनर्वास के साधन नहीं हैं।
- अप्रैल 1994– विश्व बैंक ने अपनी परियोजनाओं की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि सरदार सरोवर परियोजना में पुनर्वास का काम ठीक से नहीं हो रहा है।
- जुलाई 1994– केंद्र सरकार की पांच सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी लेकिन अदालत के आदेश के कारण इसे जारी नहीं किया जा सका। इसी महीने में कई पुनर्वास केंद्रों में प्रदूषित पानी पीने से दस लोगों की मौत हुई।
- नवंबर-दिसम्बर 1994– बांध बनाने के काम दोबारा शुरू करने के विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भोपाल में धरना देना शुरू किया।
- दिसम्बर 1994– मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा के सदस्यों की एक समिति बनाई जिसने पुनर्वास के काम का जायज़ा लेने के बाद कहा कि भारी गड़बड़ियां हुई हैं।
- जनवरी 1995– सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि पांच सदस्यों वाली सरकारी समिति की रिपोर्ट को जारी किया जाए। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने बांध की उपयुक्त ऊंचाई तय करने के लिए अध्ययन के आदेश दिए।
- मार्च 1995– विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सरदार सरोवर परियोजना गंभीर समस्याओं में घिरी है।
- जून 1995– गुजरात सरकार ने एक नर्मदा नदी पर एक नई विशाल परियोजना-कल्पसर शुरू करने की घोषणा की।
- नवंबर 1995– सुप्रीम कोर्ट ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी।
- 1996– उचित पुनर्वास और ज़मीन देने की मांग को लेकर मेधा पाटकर के नेतृत्व में अलग-अलग बांध स्थलों पर धरना और प्रदर्शन जारी रहा।
- अप्रैल 1997– महेश्वर के विस्थापितों ने मंडलेश्वर में एक जुलूस निकाला जिसमें ढाई हज़ार लोग शामिल हुए। इन लोगों ने सरकार और बांध बनाने वाली कंपनी एस कुमार्स की पुनर्वास योजनाओं पर सवाल उठाए।
- अक्टूबर 1997– बांध बनाने वालों ने अपना काम तेज़ किया जबकि विरोध जारी रहा।
- जनवरी 1998– सरकार ने महेश्वर और उससे जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा की घोषणा की और काम रोका गया।
- अप्रैल 1998– दोबारा बांध का काम शुरू हुआ, स्थानीय लोगों ने निषेधाज्ञा को तोड़कर बांधस्थल पर प्रदर्शन किया, पुलिस ने लाठियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े।
- मई-जुलाई 1998– लोगों ने जगह-जगह पर नाकाबंदी करके निर्माण सामग्री को बांधस्थल तक पहुंचने से रोका।
- नवंबर 1998– बाबा आमटे के नेतृत्व में एक विशाल जनसभा हुई और अप्रैल 1999 तक ये सिलसिला जारी रहा।
- दिसम्बर 1999– दिल्ली में एक विशाल सभा हुई जिसमें नर्मदा घाटी के हज़ारों विस्थापितों ने हिस्सा लिया।
- नर्मदा बांध के मुद्दे पर ही वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी 51 घंटे के उपवास पर बैठ गए थे।
नर्मदा बचाओ आंदोलन :
इस बांध को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर लगातार विरोध करती रही हैं। उन्होंने साल 1985 में उन्होंने ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत की थी जो अब तक जारी है। इस आंदोलन का मकसद, बांध की ऊंचाई बढ़ाकर 138 मीटर किए जाने से मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी के 192 गांवों और इनमें बसे 40 हजार परिवार प्रभावित होने वाले हैं, के पुनर्वास से सम्बंधित है। खबरों के मुताबिक पुनर्वास के लिए जहां नई बस्तियां बसाने की तैयारी चल रही है, वहां सुविधाओं का अभाव है। मेधा इनके पुनर्वास के बेहतर इंतजाम की मांग को लेकर आंदोलन करती रही हैं।
इस विवाद पर साल 2002 में डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ड्रोन्ड आउट’ (Drowned Out) भी बन चुकी है। जिसकी कहानी एक आदीवासी परिवार पर आधारित है जो नर्मदा बांध के लिए रास्ता देने की जगह वहीं रहकर डूबकर मरने का पैसला करता है। इससे पहले साल 1995 में भी इस पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी थी जिसका नाम था ‘नर्मदा डायरी’।
स्त्रोत : विकिपीडिया, सरकारी वेबसाइट : sardarsarovardam.org/ , अन्य- सरदार सरोवर परियोजना की कहानी.
आपके सुझाव आमंत्रित है। इस आर्टिकल से संबंधित किसी भी प्रकार का संशोधन, आप हमारे साथ साझा कर सकते हैं।
share it friends. This is real and quality content.
बहुत अद्भुत जानकारी
good work sir
Thanks. 🙂
अद्भुत , अविश्वसनीय
Lekin 8 Feb 2017 supreme court ke aadesh ka palan abhi tk nhi hua h sir
Aaj bhi visthapito ko unka haq nhi mila h