हिमालय (Himalaya)
हिमालय शब्द संस्कृत के हिम और आलय से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है बर्फ का घर। आज हम इसे हिमालय पर्वत के नाम से जानते हैं। इसके संक्षिप्त रूप में हम इसे केवल हिमालय कहते हैं। एमिली डिकिन्सन की कविता में हिमालय को हिमलेह भी कहा गया है।
भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित हिमालय भू-वैज्ञानिक और संरचनात्मक रूप से नवीन वलित पर्वत श्रंखला है, जिसका निर्माण यूरोपीय और भारतीय प्लेट के अभिसरण से टर्शियरी कल्प में हुआ था।
यह पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक चापाकार रूप में लगभग 2400 किमी. की लंबाई में विस्तृत है। हिमालय पर्वत की चौड़ाई पश्चिम पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर घटती जाती है। इसीलिए कश्मीर में इसकी चौड़ाई लगभग 400 किमी. है और अरुणाचल प्रदेश की इसकी चौड़ाई सिमटकर 150 किमी. तक ही रह जाती है। इसके विपरीत हिमालय की ज़्यादातर ऊँची चोटियाँ इसके पूर्वी आधे भाग में पायी जाती हैं। हिमालय के उत्तर में ट्रांस हिमालय पाया जाता है, जिसमें काराकोरम, लद्दाख और जास्कर श्रेणियाँ शामिल हैं।
हिमालय की शब्दावली (Himalaya Glossary):
हिमालय का वर्गीकरण (Classification of Himalaya):
हिमालय को दो आधारों पर विभाजित किया जाता है:
- उत्तर से दक्षिण विभाजन / भूआकृतिक विभाजन (Geographical division of Himalayas)
- पश्चिम से पूर्व विभाजन / प्रादेशिक विभाजन (Regional division of Himalaya)
भूआकृतिक विभाजन / हिमालय का उत्तर से दक्षिण विभाजन (Geographical division of Himalayas):
हिमालय में उत्तर से दक्षिण क्रमशः वृहत हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक नाम की तीन समानांतर पर्वत श्रेणियाँ पायी जाती हैं। यह तीनों श्रेणियाँ घाटियों या भ्रंशो के द्वारा आपस में अलग होती हैं।
वृहत हिमालय (Great Himalayas):
हिमालय की सबसे ऊतरी श्रेणी को वृहत हिमालय, ग्रेट हिमालय, हिमाद्रि आदि नामों से जाना जाता है। यह हिमालय की सर्वाधिक सतत और सबसे ऊँची श्रेणी है। जिसकी औसत ऊँचाई लगभग 6000 मी. है। हिमालय की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ (माउंट एवरेस्ट, कंचनजंघा आदि) इसी पर्वत श्रेणी में पायी जाती हैं। हिमालय की इस श्रेणी का निर्माण सबसे पहले हुआ था और इसका कोर ग्रेनाइट का बना हुआ है। यहाँ से कई बड़े-बड़े ग्लेशियरों की उत्पत्ति होती है। प्रादेशिक विभाजनहिमालय की सबसे ऊतरी श्रेणी को वृहत हिमालय, ग्रेट हिमालय, हिमाद्रि आदि नामों से जाना जाता है। यह हिमालय की सर्वाधिक सतत और सबसे ऊँची श्रेणी है। जिसकी औसत ऊँचाई लगभग 6000 मी. है। हिमालय की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ (माउंट एवरेस्ट, कंचनजंघा आदि) इसी पर्वत श्रेणी में पायी जाती हैं। हिमालय की इस श्रेणी का निर्माण सबसे पहले हुआ था और इसका कोर ग्रेनाइट का बना हुआ है। यहाँ से कई बड़े-बड़े ग्लेशियरों की उत्पत्ति होती है।
मध्य / लघु-हिमालय (Middle / Small Himalayas):
यह वृहत हिमालय के दक्षिण में स्थित श्रेणी है, जिसे ‘हिमाचल श्रेणी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 3700 मी. से 4500 मी. तक पायी जाती है और औसत चौड़ाई लगभग 50 किमी. है। लघु हिमालय श्रेणी में पीरपंजाल, धौलाधर और महाभारत उप श्रेणियाँ अवस्थित हैं। इनमें सर्वाधिक लंबी और महत्वपूर्ण उप श्रेणी पीरपंजाल है। कश्मीर की घाटी, कांगड़ा की घाटी और कुल्लू की घाटी आदि लघु हिमालय में ही स्थित है। लघु-हिमालय पर्वतीय पर्यटन केन्द्रों के लिए प्रसिद्ध है।
शिवालिक / निम्न तथा बाहरी हिमालय (Shivalik):
शिवालिक की पहाड़ियाँ हिमाचल प्रदेश में स्थित हैं। शिवालिक हिमालय की गिरिपाद पहाड़ियाँ हैं। हिमाचल श्रेणी (लघु-हिमालय) तथा शिवालिक श्रेणी (निम्न-हिमालय) के बीच कुछ समतल सरंचनात्मक घाटियां हैं, इन्हे ‘दून‘ कहते हैं (देहरादून, कोटलीदून, पाटलीदून)। शिवालिक के गिरिपाद मैदानों के दक्षिण में दलदली क्षेत्र है जिसे ‘तराई‘ कहते हैं। शिवालिक को निम्न तथा बाहरी हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
लघु-हिमालय की दक्षिण में स्थित शिवालिक श्रेणी हिमालय की सबसे बाहरी श्रेणी है। इसकी ऊँचाई 900 मी. से लेकर 1500 मी. तक ही पायी जाती है और पूर्वी हिमालय में इसका विस्तार लगभग नहीं पाया जाता है। शिवालिक श्रेणी की चौड़ाई 10 मी. से 50 मी. के बीच ही पायी जाती है। इस श्रेणी का निर्माण अवसादी और असंगठित चट्टानों से हुआ है। शिवालिक के पर्वतपादों के पास जलोढ़ पंख या जलोढ़ शंकु पाये जाते हैं।
इन तीन मुख्य श्रेणियों के अलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है। इसका विवरण आगे दिया गया है।
प्रादेशिक विभाजन / हिमालय का पश्चिम से पूर्व विभाजन (Regional division of Himalaya):
हिमालय को नदी घाटियों के आधार पर भी पश्चिम से पूर्व कई भागों में विभाजित किया गया है। सर सिडनी बुराड ने हिमालय को चार क्षैतिज प्रदेशों में बाँटा है। इसका विवरण निम्नलिखित है: (Updating…)
पंजाब हिमालय (Punjab Himalaya):
सिंधु और सतलज नदी के मध्य विस्तृत हिमालय (इसे पुनः कश्मीर-हिमालय और हिमाचल-हिमालय के नाम से दो उप-भागों में बाँटा जाता है)।
कुमायूँ हिमालय (Kumaon Himalaya):
सतलज और काली नदी के मध्य विस्तृत हिमालय।
नेपाल हिमालय (Nepal Himalaya):
काली और तीस्ता नदी के मध्य विस्तृत हिमालय।
असम हिमालय (Assam Himalaya):
तीस्ता और दिहांग नदी के मध्य विस्तृत हिमालय।
दिहांग गॉर्ज के बाद हिमालय दक्षिण की तरफ मुड़ जाता है। जहाँ इसे ‘पूर्वांचल’ या ‘उत्तर-पूर्वी’ हिमालय कहा जाता है। इसका विस्तार भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाया जाता है। पूर्वांचल-हिमालय में पटकई बूम, मिज़ो हिल्स, त्रिपुरा हिल्स, नागा हिल्स आदि शामिल हैं।
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ट्रांस हिमालय / परा-हिमालय / तिब्बत हिमालय क्षेत्र (Trans Himalaya):
परा हिमालय जिसे ‘ट्रांस-हिमालय’ या ‘टेथीज-हिमालय‘ भी कहते हैं, हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है। इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है। यह श्रेणी इण्डस-सांपू-शटर-ज़ोन नामक भ्रंश द्वारा तिब्बत के पठार से अलग है।
‘ट्रांस हिमालय पर्वतीय क्षेत्र’ का काफी हिस्सा तिब्बत में भी पड़ता है, इसलिए इसे ‘तिब्बत हिमालय क्षेत्र’ भी कहा जाता है। ‘ट्रांस हिमालय’ या ‘तिब्बत हिमालय क्षेत्र’ महान हिमालय के उत्तर में स्थित है, और इसमें काराकोरम, लद्दाख, जास्कर और कैलाश नाम की पर्वत श्रेणियाँ शामिल हैं।
ट्रांस हिमालय की काराकोरम, लद्दाख और जास्कर पर्वत श्रेणियों का विस्तार भारत में भी पाया जाता है, लेकिन कैलाश पर्वत श्रेणी का विस्तार भारत में न होकर पूरी तरह से तिब्बत में है। काराकोरम पर्वत श्रेणी को ‘उच्च एशिया रीढ़ की हड्डी’ (Asia’s Spinal Cord) कहा जाता है।
काराकोरम पर्वत श्रेणी (Karakoram mountain range):
यह ट्रांस हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की सबसे उत्तरी पर्वत श्रेणी है, जिसे ‘कृष्णगिरी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्वत श्रेणी अफगानिस्तान और चीन के साथ भारत की सीमा का निर्माण करती है।
यह पश्चिम में पामीर से लेकर पूर्व में 800 किमी. तक की लंबाई में फैला हुआ है। इस पर्वत श्रेणी की औसत चौड़ाई 120-140 किमी. और इसकी ऊंचाई शायद ही कहीं पर 5500 मी. से कम हो। यहाँ अनेक ऊंची चोटियाँ स्थित हैं, जिनमें से कुछ की ऊँचाई 8000 मी. से भी अधिक है।
विश्व की दूसरी और भारतीय क्षेत्र में स्थित सबसे ऊँची पर्वत चोटी ‘के-2’ काराकोरम पर्वत श्रेणी में ही स्थित है। ब्रिटिशों ने ‘के-2’ चोटी को ‘गॉडविन आस्टिन’ नाम दिया है और चीनी लोगों ने इसे ‘कोगीर’ नाम दिया है। ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर स्थित कुछ संबसे बड़े ग्लेशियरों की उपस्थिति यहाँ पायी जाती है।
लद्दाख पर्वत श्रेणी (Ladakh Mountain Range):
यह ट्रांस हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की एक अन्य महत्वपूर्ण पर्वत श्रेणी है, जो लेह के उत्तर में अवस्थित है और पूर्व की ओर बढ़ती हुई तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रेणी से मिल जाती है। ‘खारदुंग-ला’ व ‘दीगर-ला’ इसी पर्वत श्रेणी में लेह के उत्तर-पूर्व में पाये जाते हैं।
जास्कर पर्वत श्रेणी (Zaskar mountain range):
जास्कर पर्वत श्रेणी 800 पू. देशांतर रेखा के सहारे महान-हिमालय से अलग होता है और महान-हिमालय के समानान्तर अवस्थित है। इस श्रेणी के उत्तर में स्थित लद्दाख-पर्वत-श्रेणी इस श्रेणी के समानान्तर फैली हुई है। जास्कर पर्वत श्रेणी की औसत ऊँचाई 5800 मी. है, लेकिन इसकी कुछ ही चोटियाँ 6000 मी. से ऊँची हैं। ‘नंगा पर्वत’ इस पर्वत-श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी है, जिसकी ऊँचाई 8126 मी. है। इस पर्वत श्रेणी की लंबाई लगभग 300 किमी. है।
कैलाश पर्वत श्रेणी (Kailash Mountain Range):
यह लद्दाख-पर्वत-श्रेणी की ही एक शाखा है, जिसका विस्तार पश्चिमी तिब्बत में पाया जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 5500-6000 मी. है और इसकी औसत चौड़ाई 30 किमी. है। ‘माउंट कैलाश’ इस पर्वत श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी है, जिसकी ऊँचाई 6714 मी. है। कैलाश पर्वत श्रेणी के उत्तरी ढाल से ही तिब्बत में सिंधु नदी का उद्गम होता है।
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Osm one
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद श्रीमान जी
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